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| घन जीवामृत समूह की महिला बनाते हुये |
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में आज किसान तेजी से प्राकृतिक खेती (Natural Farming) और जैविक खेती (Organic Farming) की ओर लौट रहे हैं।
रासायनिक खादों के लगातार उपयोग से मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट, लागत में बढ़ोतरी और पर्यावरण पर बुरा असर देखने को मिला है।
इसीलिए किसानों का झुकाव अब फिर से पारंपरिक और टिकाऊ कृषि पद्धति की ओर बढ़ रहा है।
इसी प्राकृतिक खेती का एक अहम हिस्सा है — घन जीवामृत (Ghan Jeevamrut)।
घन जीवामृत क्या है?
घन जीवामृत एक प्राकृतिक और जैविक खाद (Bio-fertilizer) है, जो मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और पौधों को पोषण देने का काम करता है।
यह द्रव जीवामृत (Liquid Jeevamrut) का ठोस रूप है, जिसे आसानी से मिट्टी में मिलाया जा सकता है।
घन जीवामृत में मौजूद सूक्ष्म जीवाणु (Microbes) और पोषक तत्व मिट्टी को जीवन देते हैं, जिससे पौधों की जड़ों में मजबूती, फसल की वृद्धि और उत्पादन में सुधार होता है।
यह पूरी तरह रासायनिक मुक्त, सस्ती और टिकाऊ खाद है, जिसे किसान अपने घर पर ही तैयार कर सकते हैं।
यह द्रव जीवामृत (Liquid Jeevamrut) का ठोस रूप है, जिसे आसानी से मिट्टी में मिलाया जा सकता है।
घन जीवामृत में मौजूद सूक्ष्म जीवाणु (Microbes) और पोषक तत्व मिट्टी को जीवन देते हैं, जिससे पौधों की जड़ों में मजबूती, फसल की वृद्धि और उत्पादन में सुधार होता है।
यह पूरी तरह रासायनिक मुक्त, सस्ती और टिकाऊ खाद है, जिसे किसान अपने घर पर ही तैयार कर सकते हैं।
घन जीवामृत बनाने की विधि
घन जीवामृत तैयार करने की प्रक्रिया बहुत आसान है।
इसे कोई भी किसान बिना ज्यादा खर्च के अपने खेत में बना सकता है।
| सामग्री | मात्रा |
|---|---|
| देशी गाय का मूत्र | 10 लीटर |
| देशी गाय का गोबर (पुराना) | 200 किलो |
| बेसन (चना आटा) | 2 किलो |
| गुड़ | 2 किलो |
| मिट्टी (खेत की या बरगद/पीपल के नीचे की) | 500 ग्राम |

घन जीवा
बनाने की प्रक्रिया:

गोबर तैयार करें:
एक साल पुराना गोबर लें और धूप में सुखा लें ताकि उसमें मौजूद गांठें टूट जाएं।
सूखने के बाद उसे चलनी से छान लें।
मिश्रण तैयार करें:
अब एक बड़े बर्तन या गड्ढे में गोबर, बेसन, गुड़, मिट्टी और गाय का मूत्र मिलाएं।
इस मिश्रण को अच्छी तरह हाथों या लकड़ी की मदद से मिलाएं।
फैलाना और ढकना:
तैयार गोबर को किसी सूखे स्थान पर समान रूप से फैला दें।
अब इस पर 20 लीटर तरल जीवामृत छिड़क दें और अच्छी तरह मिलाएं।
किण्वन (Fermentation):
मिश्रण को 48 घंटे तक ढककर रखें।
इस दौरान इसमें सूक्ष्म जीवाणु सक्रिय हो जाते हैं और जैविक क्रियाएं शुरू हो जाती हैं।
तैयारी पूरी करें:
दो दिन बाद जब मिश्रण सूख जाए, तब उसे बोरी में भरकर सूखे स्थान पर रख दें।
यही तैयार घन जीवामृत है, जिसे खेत में उपयोग किया जा सकता है।
एक साल पुराना गोबर लें और धूप में सुखा लें ताकि उसमें मौजूद गांठें टूट जाएं।
सूखने के बाद उसे चलनी से छान लें।
मिश्रण तैयार करें:
अब एक बड़े बर्तन या गड्ढे में गोबर, बेसन, गुड़, मिट्टी और गाय का मूत्र मिलाएं।
इस मिश्रण को अच्छी तरह हाथों या लकड़ी की मदद से मिलाएं।
फैलाना और ढकना:
तैयार गोबर को किसी सूखे स्थान पर समान रूप से फैला दें।
अब इस पर 20 लीटर तरल जीवामृत छिड़क दें और अच्छी तरह मिलाएं।
किण्वन (Fermentation):
मिश्रण को 48 घंटे तक ढककर रखें।
इस दौरान इसमें सूक्ष्म जीवाणु सक्रिय हो जाते हैं और जैविक क्रियाएं शुरू हो जाती हैं।
तैयारी पूरी करें:
दो दिन बाद जब मिश्रण सूख जाए, तब उसे बोरी में भरकर सूखे स्थान पर रख दें।
यही तैयार घन जीवामृत है, जिसे खेत में उपयोग किया जा सकता है।
घन जीवामृत का उपयोग कब और कैसे करें
बुवाई के पहले:
आखिरी जुताई के समय प्रति एकड़ लगभग 200 किलो घन जीवामृत खेत में समान रूप से फैला दें।
इससे मिट्टी की उर्वरता और सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ती है।
पौधरोपण के समय:
पौधे लगाने से पहले या बाद में मिट्टी में घन जीवामृत मिलाने से पौधों की जड़ें मजबूत होती हैं।
निराई-गुड़ाई के बाद:
हर 15 से 20 दिन के अंतराल पर घन जीवामृत का छिड़काव करने से पौधों को लगातार पोषण मिलता है।
फूल आने से पहले:
फसल में फूल आने से पहले इसका प्रयोग करने से फूलों की संख्या और आकार में वृद्धि होती है।
आखिरी जुताई के समय प्रति एकड़ लगभग 200 किलो घन जीवामृत खेत में समान रूप से फैला दें।
इससे मिट्टी की उर्वरता और सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ती है।
पौधरोपण के समय:
पौधे लगाने से पहले या बाद में मिट्टी में घन जीवामृत मिलाने से पौधों की जड़ें मजबूत होती हैं।
निराई-गुड़ाई के बाद:
हर 15 से 20 दिन के अंतराल पर घन जीवामृत का छिड़काव करने से पौधों को लगातार पोषण मिलता है।
फूल आने से पहले:
फसल में फूल आने से पहले इसका प्रयोग करने से फूलों की संख्या और आकार में वृद्धि होती है।
घन जीवामृत केवल एक खाद नहीं, बल्कि मिट्टी के लिए जीवनदायक अमृत है।
इसके अनेक लाभ हैं जो किसान की लागत कम करने और उत्पादन बढ़ाने में मदद करते हैं।
यह सूक्ष्म जीवों की वृद्धि करता है, जिससे मिट्टी भुरभुरी और उपजाऊ बनती है।
पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है:
नियमित उपयोग से पौधों पर रोगों का असर कम होता है, और वे मजबूत बनते हैं।
पत्तों में चमक और फलों में स्वाद बढ़ाता है:
पौधों में मौजूद क्लोरोफिल की मात्रा बढ़ने से पत्तों का रंग गहरा हरा और फलों का स्वाद प्राकृतिक होता है।
पर्यावरण की रक्षा करता है:
इसमें किसी भी तरह का रासायनिक तत्व नहीं होता, जिससे भूमि और जल प्रदूषण नहीं होता।
कृषि लागत में कमी:
किसान इसे घर पर तैयार कर सकता है, जिससे महंगे रासायनिक खादों पर निर्भरता घटती है।
दीर्घकालिक लाभ:
लगातार उपयोग से मिट्टी में जैविक पदार्थों की मात्रा बढ़ती है और उसकी उत्पादकता वर्षों तक बनी रहती है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से घन जीवामृत
घन जीवामृत में मौजूद सूक्ष्म जीवाणु (Bacteria, Fungi, Actinomycetes) मिट्टी में जैविक पदार्थों को तोड़कर पौधों के लिए पोषण तैयार करते हैं।
गाय का गोबर और मूत्र इन जीवाणुओं के लिए भोजन का कार्य करता है, जबकि गुड़ और बेसन उन्हें सक्रिय और प्रजननशील बनाए रखते हैं।
मिट्टी में ये सूक्ष्म जीव पौधों की जड़ों से सहजीवी संबंध बनाकर नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation), फॉस्फोरस घुलनशीलता (Phosphate Solubilization) और सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढ़ाते हैं।
गाय का गोबर और मूत्र इन जीवाणुओं के लिए भोजन का कार्य करता है, जबकि गुड़ और बेसन उन्हें सक्रिय और प्रजननशील बनाए रखते हैं।
मिट्टी में ये सूक्ष्म जीव पौधों की जड़ों से सहजीवी संबंध बनाकर नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation), फॉस्फोरस घुलनशीलता (Phosphate Solubilization) और सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढ़ाते हैं।
प्राकृतिक खेती में घन जीवामृत की भूमिका
घन जीवामृत ज़ीरो बजट नैचुरल फार्मिंग (ZBNF) का एक प्रमुख घटक है।
महात्मा बसवन्ना, सुभाष पालेकर जैसे कृषि वैज्ञानिकों ने इसके महत्व को बार-बार बताया है।
यह खेती को पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाता है, क्योंकि किसान को न तो बाहर से रासायनिक खाद खरीदनी पड़ती है, और न ही कीटनाशकों पर खर्च करना पड़ता है।
इसके निरंतर उपयोग से मिट्टी में जीवांश की मात्रा स्थायी रूप से बढ़ती है, जिससे फसल उत्पादन प्राकृतिक तरीके से बढ़ता है।
महात्मा बसवन्ना, सुभाष पालेकर जैसे कृषि वैज्ञानिकों ने इसके महत्व को बार-बार बताया है।
यह खेती को पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाता है, क्योंकि किसान को न तो बाहर से रासायनिक खाद खरीदनी पड़ती है, और न ही कीटनाशकों पर खर्च करना पड़ता है।
इसके निरंतर उपयोग से मिट्टी में जीवांश की मात्रा स्थायी रूप से बढ़ती है, जिससे फसल उत्पादन प्राकृतिक तरीके से बढ़ता है।
घन जीवामृत बनाते समय सावधानियां
- केवल देशी गाय का गोबर और मूत्र ही प्रयोग करें।
- धातु के बर्तन की जगह मिट्टी या प्लास्टिक के बर्तन का प्रयोग करें।
- किण्वन के दौरान मिश्रण को धूप और बारिश से बचाकर रखें।
- तैयार घन जीवामृत को सूखे स्थान पर ही संग्रहित करें।
- 2-3 महीने बाद नया घन जीवामृत दोबारा तैयार करें ताकि जीवाणु सक्रिय बने रहें।
घन जीवामृत एक ऐसी देसी तकनीक है जो किसानों को कम लागत, उच्च उत्पादन और स्वस्थ मिट्टी का रास्ता दिखाती है।
यह न केवल मिट्टी की सेहत सुधारता है बल्कि पर्यावरण को भी सुरक्षित रखता है।
अगर हर किसान प्राकृतिक खेती को अपनाकर घन जीवामृत का प्रयोग करे, तो रासायनिक खेती से होने वाली हानि को काफी हद तक रोका जा सकता है।
यह सही मायनों में “मिट्टी का अमृत” है — जो धरती को जीवंत और फसलों को पोषक बनाता है।
यह न केवल मिट्टी की सेहत सुधारता है बल्कि पर्यावरण को भी सुरक्षित रखता है।
अगर हर किसान प्राकृतिक खेती को अपनाकर घन जीवामृत का प्रयोग करे, तो रासायनिक खेती से होने वाली हानि को काफी हद तक रोका जा सकता है।
यह सही मायनों में “मिट्टी का अमृत” है — जो धरती को जीवंत और फसलों को पोषक बनाता है।




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