"दशपर्णी अर्क बनाने की विधि, उपयोग और फायदे | प्राकृतिक खेती का जैविक कीटनाशक"
आज के समय में किसान रासायनिक कीटनाशकों पर काफी खर्च करते हैं। इससे न केवल लागत बढ़ती है बल्कि मिट्टी की उर्वरता, पानी और पर्यावरण भी खराब होता है। ऐसे में दशपर्णी अर्क किसानों के लिए एक वरदान है। यह एक जैविक कीटनाशक (Organic Pesticide) है जो घर पर आसानी से बनाया जा सकता है। इसका नाम "दशपर्णी" इसलिए है क्योंकि इसे दस प्रकार की पत्तियों से बनाया जाता है।
दशपर्णी अर्क बनाने में लगने वाली सामग्री
- 200 लीटर पानी
- 2 किलो देसी गाय का गोबर
- 10 लीटर देसी गाय का गौमूत्र
- 500 ग्राम अदरक का पेस्ट
- 200 ग्राम हल्दी पाउडर
- 500 ग्राम सोंठ पाउडर
- 1 किलो तम्बाकू का पाउडर
- 1 किलो तीखी हरी मिर्च का पेस्ट
- 1 किलो देसी लहसुन की चटनी
- 10–15 प्रकार की पत्तियाँ (नीम, करंज, धतूरा, बेल, अरंडी, तुलसी, सीताफल, गेंदा, कनेर, पपीता, करेले, हल्दी, अदरक, बबूल, मुनगा आदि)
बनाने की विधि (Step by Step)
पहला दिन
- 200 लीटर पानी में 2 किलो गोबर और 10 लीटर गोमूत्र डालकर अच्छे से मिलाएँ।
- इसमें अदरक का पेस्ट, हल्दी और सोंठ पाउडर डालें।
- मिश्रण को हिलाकर बोरे से ढक दें और एक रात के लिए छायादार स्थान पर रखें।
दूसरा दिन
- अगले दिन इसमें 1 किलो तम्बाकू पाउडर, 1 किलो हरी मिर्च का पेस्ट और 1 किलो लहसुन की चटनी डालें।
- अच्छी तरह मिलाएँ और फिर रातभर के लिए छोड़ दें।
तीसरा दिन
- तीसरे दिन इसमें चुनी हुई 10–15 प्रकार की पत्तियाँ डालें (कम से कम 5 मुख्य – नीम, करंज, सीताफल, अरंडी, धतूरा)।
- पत्तियों को अच्छे से कूटकर डालें ताकि उनका रस मिश्रण में मिल सके।
किण्वन (Fermentation)
- पूरे मिश्रण को 30–40 दिन तक सड़ने दें।
- इस दौरान रोज़ाना एक बार लकड़ी के डंडे से घड़ी की दिशा में 2–3 मिनट हिलाएँ।
- ड्रम को कपड़े से ढककर छायादार स्थान पर रखें।
तैयार अर्क
- 40 दिन बाद अर्क को कपड़े से छान लें।
- अब यह प्रयोग के लिए तैयार है।
उपयोग की विधि
- प्रति एकड़ 6–8 लीटर दशपर्णी अर्क को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
- इसका छिड़काव हर 15–20 दिन में एक बार करें।
- यह फसलों के सभी प्रमुख कीटों जैसे — इल्ली, माहू, थ्रिप्स, सफेद मक्खी, रस चूसने वाले कीट और पत्ती लपेटक आदि पर प्रभावी है।
फायदे
- कीट नियंत्रण – सभी प्रकार के कीटों का प्रबंधन।
- कम लागत – रासायनिक दवाओं की तुलना में बहुत सस्ता।
- मिट्टी की उर्वरता – भूमि के सूक्ष्मजीवों को हानि नहीं पहुँचाता।
- फसल की गुणवत्ता – अनाज, सब्जी और फल अधिक पौष्टिक और सुरक्षित।
- पर्यावरण संरक्षण – रासायनिक अवशेष नहीं रहते, जल और भूमि सुरक्षित।
- सुरक्षित छिड़काव – किसान और पशु-पक्षियों के लिए हानिरहित।
विशेष सावधानियाँ
- हमेशा छायादार स्थान पर ही मिश्रण को रखें।
- ड्रम को कपड़े से ढकें ताकि हवा आ-जा सके लेकिन कीड़े न घुसें।
- घड़ी की सुई की दिशा में ही हिलाएँ।
- एक बार तैयार अर्क को 6 महीने तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
वैज्ञानिक महत्व
दशपर्णी अर्क में मौजूद पत्तियों और मसालों में एल्कलॉइड, टर्पेनॉइड, ग्लाइकोसाइड और फेनोलिक यौगिक पाए जाते हैं। ये कीटों की भोजन ग्रहण करने की क्षमता और प्रजनन चक्र को बाधित कर देते हैं। साथ ही इसका गंध कीटों को फसलों से दूर रखती है।
दशपर्णी अर्क किसानों के लिए एक ऐसा जैविक उपाय है जो फसलों को कीटों से बचाता है, लागत कम करता है और पर्यावरण को सुरक्षित रखता है। जो किसान जैविक खेती (Organic Farming) करना चाहते हैं, उनके लिए यह एक अनमोल साधन है।
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