प्राकृतिक खेती में ‘अग्नि अस्त्र’: कीटों पर वार, फसल का पहरेदार
अग्नि अस्त्र क्या है?
यह एक ऐसा मिश्रण है जिसमें प्राकृतिक तत्वों की शक्ति होती है।
गौमूत्र, नीम, लहसुन और मिर्च जैसे तत्वों के मिश्रण से ऐसा घोल तैयार होता है जो कीटों को नुकसान पहुँचाए बिना मिट्टी और फसल को पोषण देता है।
रासायनिक दवाओं के विपरीत, अग्नि अस्त्र फसलों को जलाता नहीं, बल्कि पत्तियों को रोग-प्रतिरोधक शक्ति प्रदान करता है।
अग्नि अस्त्र बनाने की सामग्री
अग्नि अस्त्र बनाने के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है —
| घटक | मात्रा |
|---|---|
| देसी गाय का गौमूत्र | 10 लीटर |
| हरी मिर्च | 500 ग्राम |
| लहसुन | 500 ग्राम |
| नीम की पत्तियाँ | 5 किलो |
| तंबाकू पाउडर | 1 किलो |
यह सभी सामग्री आसानी से गाँव में उपलब्ध होती है।
अग्नि अस्त्र बनाने की विधि
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सबसे पहले नीम की पत्तियाँ, मिर्च और लहसुन को बारीक पीस लें।
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इस मिश्रण में 10 लीटर देसी गाय का ताजा गौमूत्र और 1 किलो तंबाकू पाउडर डालें।
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सबको मिलाकर लोहे या एल्युमिनियम की बड़ी देगची में धीमी आँच पर पकाएँ।
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मिश्रण को तब तक पकाएँ जब तक उसका रंग गाढ़ा भूरा न हो जाए और झाग खत्म न हो जाए।
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अब इस मिश्रण को 24 घंटे ठंडा होने दें।
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अगले दिन कपड़े से छान लें और हवा-बंद डिब्बे में संग्रह करें।
इस घोल को सुबह-शाम लकड़ी के डंडे से 2 दिन तक हिलाते रहें, ताकि सभी घटक अच्छी तरह मिल जाएँ।
इस प्रकार तैयार किया गया अग्नि अस्त्र 3 महीने तक सुरक्षित रहता है और बार-बार इस्तेमाल किया जा सकता है।
उपयोग की विधि
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2–3 लीटर अग्नि अस्त्र के घोल को 200 लीटर पानी में मिलाएँ।
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इस घोल को फसल पर स्प्रेयर मशीन की मदद से छिड़कें।
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सुबह या शाम के समय (जब धूप तेज़ न हो) स्प्रे करना सबसे प्रभावी होता है।
👉 इसका उपयोग हर 10–15 दिन में एक बार करें।
इससे कीटों की संख्या घटेगी और फसल की पत्तियाँ हरी-भरी रहेंगी।
अग्नि अस्त्र के लाभ
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प्राकृतिक कीटनाशक: पूरी तरह से जैविक और बिना रासायनिक तत्वों के।
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कम लागत वाला उपाय: बाजार की महंगी दवाओं की तुलना में बहुत सस्ता।
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मिट्टी के लिए लाभकारी: मिट्टी की उर्वरता और सूक्ष्मजीव संरचना को नुकसान नहीं पहुँचाता।
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फसल की सेहत में सुधार: फसल की पत्तियाँ अधिक चमकीली और मजबूत होती हैं।
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पर्यावरण के अनुकूल: इसका छिड़काव करने से प्रदूषण नहीं फैलता।
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मानव और पशुओं के लिए सुरक्षित: यह दवा जहरीली नहीं होती, इसलिए स्वास्थ्य पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ता।
अग्नि अस्त्र किन-किन कीटों पर असरदार है?
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रस-चूसने वाले कीट (Aphids, Jassids, Whitefly)
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छोटी इल्ली, फली छेदक कीट
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थ्रिप्स (Thrips)
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तना-छेदक कीट
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भूरा या सफेद मक्खी वर्ग के कीट
यह घोल इन कीटों को खत्म कर देता है और फसलों में रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।
किसानों के अनुभव से प्रमाणित
मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले के घाटीगांव ब्लॉक में “शीतला आजीविका संकुल स्व-सहायता संगठन” के किसानों ने अग्नि अस्त्र को अपनाया है।
इन किसानों ने बताया कि इस जैविक कीटनाशक के नियमित उपयोग से फसलों पर कीटों का प्रकोप लगभग 70% तक कम हुआ, और दवा पर होने वाला खर्च आधा रह गया।
किसान महिलाएँ स्वयं इस दवा को तैयार करती हैं, जिससे उन्हें अतिरिक्त आय भी मिलती है।
इससे महिलाओं का आत्मविश्वास और ग्रामीण अर्थव्यवस्था — दोनों में वृद्धि हुई है।
प्राकृतिक खेती में अग्नि अस्त्र की भूमिका
प्राकृतिक खेती का मूल सिद्धांत है —
“मिट्टी को ज़िंदा रखना, फसल को रसायन-मुक्त रखना।”
अग्नि अस्त्र इसी सिद्धांत पर आधारित है। यह न केवल कीटों का नियंत्रण करता है, बल्कि मिट्टी की जैविक संरचना को भी सुधारता है।
नतीजा यह होता है कि खेत की जमीन साल दर साल और भी उपजाऊ बनती जाती है।
इसके साथ अगर किसान जीवामृत, घन जीवामृत और ब्रह्मास्त्र जैसी अन्य प्राकृतिक तैयारियों का भी उपयोग करें, तो फसलें पूर्णतः जैविक और पोषक बन सकती हैं।
कम लागत, अधिक मुनाफा
अग्नि अस्त्र का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे तैयार करने की लागत बेहद कम है —
सिर्फ ₹100–₹150 में इतना घोल बन जाता है जो पूरे एक एकड़ खेत के लिए पर्याप्त होता है।
वहीं बाजार में बिकने वाले रासायनिक कीटनाशक पर ₹700–₹1000 तक का खर्च आता है।
यानी किसान हर फसल में ₹500–₹800 तक की बचत कर सकते हैं।
पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता
रासायनिक कीटनाशक जहाँ जल और मिट्टी को प्रदूषित करते हैं, वहीं अग्नि अस्त्र पर्यावरण-मित्र है।
यह मिट्टी में मौजूद लाभकारी सूक्ष्मजीवों (micro-organisms) को सक्रिय रखता है और जैव विविधता को सुरक्षित बनाता है।
इससे खेत में मिट्टी के केंचुए, लाभकारी कीट और जीवाणु बने रहते हैं, जो मिट्टी को “जीवंत” बनाए रखते हैं।
किसानों के लिए संदेश
अगर किसान अपनी मिट्टी, फसल और पर्यावरण को सुरक्षित रखना चाहते हैं, तो उन्हें अग्नि अस्त्र जैसी जैविक तैयारियों को अपनाना चाहिए।
यह न केवल कीटों को दूर रखेगा, बल्कि फसल की गुणवत्ता और उपज — दोनों में सुधार लाएगा।
“रासायनिक दवाओं से नहीं, प्राकृतिक उपायों से ही खेती बनेगी स्थायी।”

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