वर्मी कम्पोस्ट: किसानों के लिए एक लाभकारी व्यवसाय
आज के समय में रासायनिक खादों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी की उर्वरता लगातार घट रही है। मिट्टी कठोर हो रही है और फसलों की गुणवत्ता पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा है। ऐसे में जैविक खेती ही एकमात्र ऐसा रास्ता है जो मिट्टी को पुनर्जीवित कर सके और पर्यावरण को सुरक्षित रख सके।
इसी दिशा में वर्मी कम्पोस्ट (Vermi Compost) किसानों के लिए एक बेहतरीन, सस्ती और टिकाऊ जैविक खाद का विकल्प बनकर उभरा है।
वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने की प्रक्रिया न केवल प्राकृतिक है बल्कि यह किसानों को आय का एक अतिरिक्त स्रोत भी प्रदान करती है। यही कारण है कि आज मध्यप्रदेश सहित पूरे भारत में किसान तेजी से इस व्यवसाय की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
वर्मी कम्पोस्ट क्या है?
वर्मी कम्पोस्ट एक ऐसी जैविक खाद है जो केंचुओं (Earthworms) की मदद से तैयार की जाती है। केंचुए जैविक पदार्थों — जैसे गोबर, सूखे पत्ते, फसल अवशेष, सब्जियों के कचरे आदि — को खाकर उन्हें अत्यधिक पौष्टिक खाद में बदल देते हैं।
यह प्रक्रिया पूरी तरह प्राकृतिक होती है और इसमें किसी रासायनिक पदार्थ का उपयोग नहीं किया जाता। इस खाद को मिट्टी में डालने से फसलों की वृद्धि बेहतर होती है, उत्पादन बढ़ता है और जमीन की नमी लंबे समय तक बनी रहती है।
वर्मी कम्पोस्ट का महत्व और लाभ
- मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है: इसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, जिंक, आयरन जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व होते हैं जो मिट्टी को समृद्ध करते हैं।
- फसल की गुणवत्ता में सुधार: वर्मी कम्पोस्ट से फसल का स्वाद, आकार और उत्पादन बेहतर होता है।
- जल धारण क्षमता बढ़ाता है: इससे मिट्टी की संरचना सुधरती है और सिंचाई की जरूरत कम होती है।
- कम लागत में अधिक लाभ: इसे तैयार करने में बहुत अधिक खर्च नहीं आता और बिक्री से अच्छी आमदनी होती है।
- पर्यावरण के लिए उपयोगी: यह पूरी तरह प्राकृतिक है, जिससे मिट्टी और पानी दोनों प्रदूषण से बचते हैं।
वर्मी कम्पोस्ट की पोषक संरचना
| तत्व | प्रतिशत (%) |
|---|---|
| नमी | 46.55% |
| कार्बन | 18.8% |
| नाइट्रोजन (N) | 1.9% |
| फॉस्फोरस (P₂O₅) | 2.08% |
| पोटाश (K₂O) | 1.80% |
| जिंक (Zn) | 400 PPM |
| मैंगनीज (Mn) | 500 PPM |
इन पोषक तत्वों के कारण वर्मी कम्पोस्ट रासायनिक खादों से कहीं बेहतर विकल्प साबित होता है।
वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि
वर्मी कम्पोस्ट दो तरीकों से तैयार किया जा सकता है —
पॉलिथीन या पिट विधि
- 100 मीटर वर्ग क्षेत्र में एक गड्ढा या टैंक बनाया जाता है।
- उसमें गाय या भैंस के गोबर, सूखे पत्ते, सब्जियों का कचरा आदि डालें।
- इन पर केंचुए (Eisenia fetida या Perionyx excavatus प्रजाति) छोड़े जाते हैं।
- ऊपर से नमी बनाए रखने के लिए गीला बोरा या तिरपाल डालें।
- लगभग 40–50 दिन में वर्मी कम्पोस्ट तैयार हो जाता है।
बेड विधि (Vermi Bed Method)
- इसमें सीमेंट या ईंटों का आयताकार बेड बनाया जाता है।
- नीचे सूखी पत्तियाँ और गोबर की परत डालकर उस पर केंचुए छोड़े जाते हैं।
- हर सप्ताह हल्की सिंचाई करें ताकि नमी बनी रहे।
- तैयार कम्पोस्ट को छानकर अलग करें और धूप में सुखा लें।
वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग
वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग लगभग सभी प्रकार की फसलों में किया जा सकता है —
- धान, गेहूं, मक्का जैसी खाद्यान्न फसलें: प्रति हेक्टेयर 5–6 टन।
- सब्ज़ी फसलें: प्रति हेक्टेयर 10–12 टन।
- फूल वाली फसलें: प्रति फिट 100–200 ग्राम।
- फलदार वृक्ष: प्रति पेड़ 5–10 किलोग्राम।
यह खाद फसल के विकास के हर चरण में उपयोग की जा सकती है — बीज बोने से लेकर फसल कटाई तक।
वर्मी कम्पोस्ट इकाई की लागत और आय का अनुमान
| विवरण | व्यय (₹) |
|---|---|
| शेड निर्माण | 75,000 |
| बेड निर्माण | 15,000 |
| केंचुआ बीज (100 किग्रा) | 5,000 |
| पानी की व्यवस्था | 3,000 |
| गोबर और अन्य सामग्री | 6,000 |
| श्रम व्यय | 12,000 |
| कुल लागत | 1,16,000 ₹ |
आय का अनुमान:
- 100 वर्गमीटर क्षेत्र में लगभग 20 टन वर्मी कम्पोस्ट तैयार होता है।
- औसतन बिक्री मूल्य ₹5–6 प्रति किग्रा।
- कुल आय लगभग ₹1,00,000 से ₹1,20,000 प्रति वर्ष।
इससे यह स्पष्ट है कि वर्मी कम्पोस्ट व्यवसाय कम लागत में अधिक लाभ देने वाला टिकाऊ विकल्प है।
वर्मी कम्पोस्ट इकाई की विशेषताएँ
- पूरी तरह पर्यावरण अनुकूल व्यवसाय।
- एक बार लगाए गए केंचुए कई सालों तक उपयोगी रहते हैं।
- रोजगार और आय दोनों का स्थायी स्रोत।
- महिला स्व-सहायता समूह (SHG) और युवा उद्यमियों के लिए उपयुक्त।
वर्मी कम्पोस्ट न केवल मिट्टी की सेहत को पुनर्जीवित करता है, बल्कि यह किसानों और ग्रामीण महिलाओं के लिए आर्थिक सशक्तिकरण का माध्यम भी है।
यह एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें कम निवेश, कम जोखिम और अधिक मुनाफा है।
यदि प्रत्येक किसान अपने खेत का जैविक कचरा वर्मी कम्पोस्ट में बदलना शुरू कर दे, तो हमारा देश न केवल “रासायनिक मुक्त खेती” की दिशा में आगे बढ़ेगा, बल्कि “आत्मनिर्भर भारत” का सपना भी साकार होगा।
“धरती को दें जैविक जीवन, वर्मी कम्पोस्ट बने किसानों का अभियान!”
सफलता की कहानियाँ
मध्यप्रदेश के घाटीगांव, ग्वालियर ब्लॉक में “शीतला आजीविका संकुल स्व-सहायता संगठन” के अंतर्गत महिला समूहों ने वर्मी कम्पोस्ट यूनिट स्थापित की है।
इन समूहों ने न केवल जैविक खाद का उत्पादन शुरू किया, बल्कि आसपास के किसानों को भी इसके लाभ समझाकर इसे अपनाने के लिए प्रेरित किया।
आज ये महिलाएँ हर वर्ष हज़ारों रुपये का लाभ कमा रही हैं और अपने क्षेत्र की “ग्रीन एंटरप्रेन्योर” बन चुकी हैं।

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